तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
अर्थ: हे शिव शंकर आप तो संकटों का नाश करने वाले हो, भक्तों का कल्याण व बाधाओं को दूर करने वाले हो योगी यति ऋषि मुनि सभी आपका ध्यान लगाते हैं। शारद नारद सभी आपको शीश नवाते हैं।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक read more विभीषण दीन्हा॥